बूंदें बरसीं, तो क्या विद्युत सिस्टम बह गया गांवों में बारिश का मतलब — अंधेरा, इंतज़ार और बेबसी जनता पूछ रही है: क्या अब बारिश होगी तो घरों तक बिजली नहीं आएगी?,समाधान नहीं, सिर्फ बहाने,गांवों के साथ भेदभाव क्यों?,बारिश राहत है, सजा नहीं,बारिश के नाम पर गायब क्यों हो जाती है बिजली एक सवाल?

इन्तजार रजा हरिद्वार- बूंदें बरसीं, तो क्या विद्युत सिस्टम बह गया,
गांवों में बारिश का मतलब — अंधेरा, इंतज़ार और बेबसी,
जनता पूछ रही है: क्या अब बारिश होगी तो घरों तक बिजली नहीं आएगी?,समाधान नहीं, सिर्फ बहाने,गांवों के साथ भेदभाव क्यों?,बारिश राहत है, सजा नहीं,बारिश के नाम पर गायब क्यों हो जाती है बिजली एक सवाल?
जैसे ही मौसम ने करवट ली, गांवों की ज़िंदगी फिर अंधेरे में डूब गई। हल्की सी बारिश क्या हुई, बिजली विभाग ने मानो ताला लगा दिया हो। हर साल की तरह इस बार भी बारिश ने न केवल गर्मी से राहत दी बल्कि बिजली विभाग की लापरवाही को भी उजागर कर दिया। ग्रामीण इलाकों में लोगों का सब्र अब जवाब देने लगा है। एक सीधा सवाल गूंज रहा है—क्या अब बारिश होगी तो बिजली नहीं आएगी?
हरिद्वार जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश गांवों में जैसे ही बादल गरजते हैं, बिजली की लाइनें ठप हो जाती हैं। कोई बड़ा तूफान नहीं, कोई भारी बारिश नहीं—सिर्फ हल्की बौछार और घंटों की कटौती। बच्चों की पढ़ाई, किसानों की सिंचाई, बुज़ुर्गों की दवाइयों की जरूरतें—सब कुछ बिजली पर टिका है, लेकिन बिजली है कि बारिश के नाम पर गायब हो जाती है।
किसका जिम्मेदार कौन?
बिजली विभाग हमेशा एक ही रटा-रटाया जवाब देता है—“बारिश में सुरक्षा कारणों से आपूर्ति रोकी जाती है।” सवाल उठता है कि क्या हर साल यही बहाना चलेगा? अगर हर बार हल्की बारिश में लाइनें ट्रिप कर जाएं तो फिर यह व्यवस्था किस काम की? क्या विभाग को यह नहीं पता कि हर साल मानसून आता है? क्या इससे निपटने के लिए कोई ठोस योजना नहीं होनी चाहिए?
गांवों के साथ भेदभाव क्यों?
शहरों में बिजली व्यवस्था बारिश में भी दुरुस्त रहती है। वहीं गांवों में हल्की हवा और फुहार से ही घंटों अंधेरा छा जाता है। क्या गांवों की जनता दूसरे दर्जे की नागरिक है? क्या उनका हक नहीं कि उन्हें भी मूलभूत सुविधाएं बिना भेदभाव मिलें?
जनता का गुस्सा उबाल पर
गांवों में अब गुस्सा साफ दिखने लगा है। किसान कहते हैं, “बिजली जाए तो मोटर नहीं चले, खेत सूख जाएं तो फसल मरे। बिजली विभाग को कोई फर्क नहीं पड़ता।” छात्र कहते हैं, “पढ़ाई ऑनलाइन है लेकिन बारिश होते ही नेटवर्क के साथ बिजली भी चली जाती है। हमारे भविष्य का जिम्मेदार कौन?”
समाधान नहीं, सिर्फ बहाने
ट्रांसफॉर्मर पुराने हैं, तारें जर्जर हैं, फॉल्ट ठीक करने वाली टीमें या तो हैं नहीं, या समय पर पहुंचती नहीं। मानसून से पहले बिजली विभाग दावा करता है कि पूरी तैयारी है, लेकिन पहली बारिश में ही सच्चाई सामने आ जाती है।
अब सवाल नहीं, जवाब चाहिए
गांवों की जनता अब सवाल नहीं, जवाब चाहती है। बिजली विभाग को बताना होगा कि:
- बारिश में बिजली क्यों काटी जाती है?
- कौन अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार है?
- हर साल मेंटेनेंस के नाम पर करोड़ों खर्च होते हैं, तो सुधार कहां है?
बारिश राहत है, सजा नहीं
बारिश प्रकृति का वरदान है, लेकिन जब वह अंधेरा, परेशानी और लाचारी बन जाए, तो यह किसी विफल व्यवस्था का परिणाम होता है। जनता अब और चुप नहीं रहेगी। अगर हालात नहीं सुधरे, तो यह बिजली कटौती प्रशासन के लिए एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी बन सकता है।
अब जनता पूछ रही है — जवाब चाहिए, बहाने नहीं।