मां को आखरी बार देखने मां के लिए लौट रहा था बेटा, रास्ते में मौत ने थाम लिया हाथ, एक ही दिन में बुझ गया दो जिंदगियों का चिराग हरिद्वार के पथरी क्षेत्र स्थित गुर्जर बस्ती गांव में पसरा मातम, एक ही घर से उठ रहे दो जनाज़े

इन्तजार रजा हरिद्वार- मां को आखरी बार देखने मां के लिए लौट रहा था बेटा, रास्ते में मौत ने थाम लिया हाथ,
एक ही दिन में बुझ गया दो जिंदगियों का चिराग
हरिद्वार के पथरी क्षेत्र स्थित गुर्जर बस्ती गांव में पसरा मातम, एक ही घर से उठ रहे दो जनाज़े

हरिद्वार के पथरी क्षेत्र स्थित गुर्जर बस्ती में गुरुवार का दिन ऐसा तूफान बनकर आया जिसने एक ही झटके में पूरे परिवार की खुशियों को निगल लिया। एक ओर जहां बीमार मां ने आखिरी सांस ली, वहीं दूसरी ओर उसका बेटा जो केदारनाथ से घर लौट रहा था, रास्ते में दर्दनाक हादसे का शिकार हो गया। मां के जनाज़े का इंतज़ार कर रहे घरवालों को बेटे की लाश का भी इंतजार करना पड़ा। अब गांव में एक साथ दो जनाज़े उठे, और हर आंख नम हो गई।
मां की मौत की खबर सुन, सब कुछ छोड़ भागा बेटा
दिलशाद, उम्र लगभग 35 साल, पेशे से चालक था और हर साल की तरह इस बार भी चारधाम यात्रा पर श्रद्धालुओं को लेकर गया हुआ था। जब घर से फोन आया कि उसकी मां वहीदा (70) अब इस दुनिया में नहीं रहीं, तो दिलशाद ने केदारनाथ से तुरंत वापसी का फैसला किया। यात्रियों को पहले पड़ाव पर उतारकर वह अपने गांव लौटने के लिए निकल पड़ा।
लेकिन क़िस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। जैसे ही वह गुप्तकाशी के फाटा क्षेत्र के पास पहुंचा, उसका टैंपो ट्रैवलर पहाड़ी मोड़ पर असंतुलित होकर गहरी खाई में जा गिरा। हादसा इतना भीषण था कि दिलशाद की मौके पर ही मौत हो गई।
मां की चिता तैयार थी, बेटे की लाश का इंतज़ार था
गांव में जब मां वहीदा का जनाज़ा उठने ही वाला था, तभी बेटे की मौत की खबर बिजली बनकर गिरी। जो लोग दिलशाद के आने का इंतजार कर रहे थे, वे अब उसकी लाश की प्रतीक्षा करने लगे। घर में कोहराम मच गया। बूढ़ी मां के जनाज़े के पास बेटे की मासूम बेटियां – मुस्कान, तानिया और सानिया – और छोटा बेटा फरहान बेसुध पड़े थे। दिलशाद ही पूरे परिवार का एकमात्र सहारा था।
गांव में पसरा सन्नाटा, मातम में बदली हर गली
गुर्जर बस्ती ही नहीं, आस-पास के गांवों से भी सैकड़ों लोग शोक जताने पहुंचने लगे। किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि जो दिलशाद सुबह तक अपनी मां के ग़म में डूबा था, वो अब खुद ताबूत में बंद होकर आ रहा है। दोनों जनाज़े एक साथ उठे, और एक ही क़ब्रिस्तान में मां-बेटे को दफनाया गया। नम आंखों से लोगों ने आखिरी विदाई दी।
चार बच्चों की आंखों में सवाल – अब हमारा क्या होगा?
दिलशाद के चारों बच्चे अभी स्कूल में पढ़ते हैं। उनमें से सबसे बड़ी बेटी मुस्कान आठवीं में है और सबसे छोटा फरहान महज़ दूसरी कक्षा में। बच्चों की आंखों में अब सिर्फ एक ही सवाल है – अब हमारा क्या होगा? रिश्तेदार और गांव वाले बच्चों को संभालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह सवाल सबके दिलों को चीर रहा है।
बोले रिश्तेदार – ‘मां के जनाज़े का इंतज़ार बेटे के लिए किया था’ कल देर रात किया सुपुर्द-ए-खाक परिवार के करीबी रिश्तेदार सलीम ने बताया, “वहीदा की मौत सुबह हो गई थी। दोपहर तक जनाज़े की तैयारी हो गई थी लेकिन हमने जनाज़ा रोके रखा, दिलशाद के आने का इंतजार था। हम सबको यकीन था कि बेटा आखिरी बार मां का चेहरा ज़रूर देखेगा। लेकिन अब जनाज़े के साथ वो खुद ही आ गया।”
स्थानीय लोगों ने उठाई प्रशासन से मदद की मांग
गांव के लोगों और स्थानीय समाजसेवियों ने प्रशासन से अपील की है कि दिलशाद के बच्चों की पढ़ाई और परवरिश की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए। जिस व्यक्ति ने अपने दम पर परिवार को खड़ा किया, आज उसके बच्चे बेसहारा हैं। यदि सरकार या समाज का सहयोग नहीं मिला तो इन मासूमों का भविष्य अंधेरे में जा सकता है।
हर किसी की जुबां पर एक ही बात – ‘कैसी क्रूर थी ये किस्मत’
गांव में हर कोई स्तब्ध है। एक ओर मां की मौत का ग़म, दूसरी ओर बेटे की मौत की त्रासदी। कोई कहता है – ‘शायद मां का इंतज़ार कर रही थी उसकी रूह’, तो कोई कहता है – ‘बेटा मां को अकेला नहीं छोड़ सका’। यह हादसा केवल एक परिवार का निजी दुख नहीं रहा, बल्कि पूरे समाज की चेतना को झकझोर गया।
श्रद्धांजलि सभा में छलक उठीं आंखें
गांव में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में हर वर्ग के लोग जुटे। सभी ने नम आंखों से मां-बेटे को याद किया। बच्चों के लिए आर्थिक सहायता की योजना पर विचार हो रहा है और कुछ सामाजिक संगठन उनके भविष्य को लेकर योजना बनाने लगे हैं।गुर्जर बस्ती का यह हादसा केवल एक सड़क दुर्घटना नहीं है, यह उन लाखों परिवारों की हकीकत को उजागर करता है जिनके पास कोई सुरक्षा जाल नहीं है। एक मां जो जीवनभर संघर्ष करती रही, और एक बेटा जो उस संघर्ष का सहारा बना – दोनों की एक साथ हुई मौत ने पूरे गांव को झकझोर दिया। अब उम्मीद है कि समाज और सरकार मिलकर इन मासूम बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी उठाएंगे।