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कुत्तों का खूनी कहर: पहले बुजुर्ग को नोचा, अब दूसरी महिला पर जानलेवा हमला, पाडली गुर्जर गांव में दहशत का माहौल, लोगों में उबाल — जिम्मेदार तंत्र खामोश, प्रशासनिक सुस्ती बनी मौत और हमले की वजह, ग्रामीणों ने दिया चेतावनी का अल्टीमेटम

इन्तजार रजा हरिद्वार- कुत्तों का खूनी कहर: पहले बुजुर्ग को नोचा, अब दूसरी महिला पर जानलेवा हमला,

पाडली गुर्जर गांव में दहशत का माहौल, लोगों में उबाल — जिम्मेदार तंत्र खामोश,

प्रशासनिक सुस्ती बनी मौत और हमले की वजह, ग्रामीणों ने दिया चेतावनी का अल्टीमेटम

रुड़की (हरिद्वार) | संवाददाता विशेष:
हरिद्वार जिले के रुड़की तहसील अंतर्गत पाडली गुर्जर गांव इन दिनों आवारा कुत्तों के आतंक से कांप रहा है। गांव में पहले ही एक वृद्ध महिला की दर्दनाक मौत के सदमे से लोग उबरे नहीं थे कि अब एक और महिला को इन खूंखार कुत्तों ने निशाना बना डाला। लगातार हो रही घटनाएं न केवल ग्रामीणों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर रही हैं, बल्कि प्रशासन की गहरी निष्क्रियता को भी उजागर करती हैं।

पहले ली थी एक बुजुर्ग की जान, अब दूसरी महिला पर हमला
कुछ दिन पहले इसी गांव में एक 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला पर झुंड में घूम रहे आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया था। वे महिला को नोच-नोच कर तब तक काटते रहे जब तक उसकी जान नहीं चली गई। इस वीभत्स हादसे ने पूरे गांव को दहला दिया था। मगर प्रशासन ने न तो कोई चेतावनी जारी की, न ही कुत्तों की धरपकड़ के लिए कोई ठोस अभियान शुरू किया।

अब, शुक्रवार को एक बार फिर से वैसी ही वीभत्स घटना ने गांववासियों को झकझोर कर रख दिया। गांव की रहने वाली 45 वर्षीय महिला बेबी, जो अपने पति से मिलने “अवसर स्कूल” जा रही थीं, वहां रास्ते में ही कुत्तों के एक झुंड ने उन पर हमला बोल दिया।

अचानक हमला, खून से लथपथ महिला को ग्रामीणों ने बचाया
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, महिला जैसे ही स्कूल के नजदीक पहुँची, घात लगाए बैठे आवारा कुत्तों ने उसे घेर लिया और बुरी तरह काटना शुरू कर दिया। महिला की चीख-पुकार सुनकर स्थानीय लोग दौड़े और लाठी-डंडों की मदद से किसी तरह महिला को कुत्तों के चंगुल से छुड़ाया। तब तक महिला बुरी तरह घायल हो चुकी थी और शरीर से काफी खून बह चुका था।

गंभीर अवस्था में महिला को तुरन्त रुड़की सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों द्वारा उसका प्राथमिक उपचार किया गया। डॉक्टरों के मुताबिक महिला को कुत्तों के दांतों से कई जगह गहरे जख्म लगे थे और वह भारी रक्तस्राव के चलते काफी कमजोर हो गई थी। फिलहाल महिला की स्थिति स्थिर है, उसे एंटी-रेबीज वैक्सीन भी दे दी गई है।

गांव में डर का साया, लेकिन प्रशासन मौन
लगातार हो रही घटनाओं ने गांव में दहशत फैला दी है। महिलाएं और बच्चे घर से निकलने में डरने लगे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने पहले ही प्रशासन को सूचित किया था, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। न तो नगर निगम ने कुत्तों की धरपकड़ शुरू की और न ही किसी तरह की सुरक्षा व्यवस्था लागू की गई।

ग्रामीण रामपाल सिंह ने बताया, “पहले एक महिला की जान चली गई, अब दूसरी पर जानलेवा हमला हुआ। कब तक हम डर-डर कर जियेंगे? क्या प्रशासन किसी और की मौत का इंतज़ार कर रहा है?” वहीं, ग्राम प्रधान ने भी प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया और कहा कि इस तरह की घटनाएं यदि नहीं रुकीं तो ग्रामीण आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।

प्रशासन के प्रति अविश्वास गहराया, आंदोलन की चेतावनी
गांववालों में गहरा रोष है। उनका कहना है कि अगर एक सप्ताह के भीतर कुत्तों को पकड़ने के लिए ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो वे सड़क पर उतरने से पीछे नहीं हटेंगे। लोग मांग कर रहे हैं कि नगर निगम या पशु चिकित्सा विभाग जल्द से जल्द अभियान चलाकर आवारा कुत्तों को पकड़वाए और उनकी नसबंदी करवाई जाए, जिससे उनकी संख्या पर नियंत्रण पाया जा सके।

डॉक्टरों का बयान — समय पर लाया गया, जान बच गई
अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राकेश चौहान ने बताया कि घायल महिला को समय रहते अस्पताल लाया गया, इसलिए स्थिति नियंत्रण में रही। उनके अनुसार, महिला को कई जगहों पर गहरे घाव हैं लेकिन खतरे से बाहर है। सभी आवश्यक टीके दे दिए गए हैं और अब उसे निगरानी में रखा गया है।

क्या कहता है कानून और प्रशासनिक जिम्मेदारी?
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार, नगर निकायों की जिम्मेदारी है कि वह सड़कों पर घूम रहे आवारा कुत्तों को नियंत्रित करें। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि न तो नगर निगम, न ही ज़िला प्रशासन इस दिशा में गंभीरता से काम कर रहा है। पाडली गुर्जर जैसी घटनाएं केवल एक गांव तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरे हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की संख्या में बढ़ोतरी देखी जा रही है।

समाधान क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि समस्या का स्थायी समाधान तभी संभव है जब एक ओर कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण सुनिश्चित हो, और दूसरी ओर कूड़ा प्रबंधन को बेहतर बनाया जाए जिससे कुत्तों को खुले में भोजन न मिले। इसके अलावा स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि संवेदनशील इलाकों में नियमित रूप से पशु पकड़ने वाली टीम तैनात की जाए।

रुड़की के पाडली गुर्जर गांव की यह त्रासदी सिर्फ एक गांव की समस्या नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक विफलता का प्रतीक है। यदि अब भी जागरूकता और कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले दिनों में और भी दर्दनाक हादसे हो सकते हैं। समय की मांग है कि जिम्मेदार अधिकारी फौरन हरकत में आएं और इस आतंक पर लगाम कसें।

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