भारत-पाकिस्तान युद्ध-विराम: क्या स्थायी शांति की शुरुआत? रणनीति, दबाव या मजबूरी: भारत की निर्णायक भूमिका, जनता को राहत या एक अस्थायी विराम? जानिए पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण

इन्तजार रजा हरिद्वार- भारत-पाकिस्तान युद्ध-विराम: क्या स्थायी शांति की शुरुआत?
रणनीति, दबाव या मजबूरी: भारत की निर्णायक भूमिका,
जनता को राहत या एक अस्थायी विराम? जानिए पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण
भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर संघर्षविराम की घोषणा हुई है। यह फैसला उस वक्त आया है जब सीमाओं पर लगातार बढ़ते सैन्य तनाव और नागरिकों की मौतों ने हालात को विस्फोटक बना दिया था। आज शाम 5 बजे से लागू हुआ यह युद्धविराम केवल एक सैन्य निर्णय नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक और रणनीतिक संतुलन का प्रतीक है, जिसने न केवल भारत की स्थिर नीति को उजागर किया, बल्कि वैश्विक मंच पर उसके बढ़ते प्रभाव को भी रेखांकित किया।
युद्धविराम: बंदूकों को विराम, विश्वास को इंतज़ार
पिछले तीन महीनों में नियंत्रण रेखा पर 70 से अधिक बार संघर्षविराम का उल्लंघन हुआ, जिसमें दर्जनों जवान और नागरिक शहीद हुए। रजौरी, पुंछ और केरन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में हालात बेहद गंभीर थे। ऐसे में यह युद्धविराम दोनों देशों के लिए समय की ज़रूरत बन चुका था।
सेना मुख्यालय में भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ स्तर की बैठक के बाद यह फैसला लिया गया। हालांकि भारत ने स्पष्ट किया कि यह कदम केवल सीमावर्ती शांति के लिए है, आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति अडिग रहेगी।
गृह मंत्रालय ने दो टूक कहा, “आतंकवाद और घुसपैठ के खिलाफ हमारी जीरो टॉलरेंस की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। युद्धविराम सीमा पर शांति का प्रयास है, कमजोरी नहीं।”
कूटनीति के मोर्चे पर भारत की निर्णायक पकड़
इस संघर्षविराम के पीछे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की बड़ी भूमिका रही। अमेरिका, सऊदी अरब, तुर्की और यूएई जैसे देशों ने पर्दे के पीछे लगातार दोनों पक्षों से संवाद किया। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में भारत ने कभी भी अपनी संप्रभुता या राष्ट्रीय सुरक्षा को समझौते की मेज़ पर नहीं रखा।
भारत की नीति स्पष्ट रही – आतंकवाद पर कोई समझौता नहीं। इसके बावजूद भारत ने द्विपक्षीय संवाद के लिए एक अवसर छोड़ा, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक शांतिप्रिय और ज़िम्मेदार शक्ति के रूप में देखा गया।
वरिष्ठ विदेश नीति विशेषज्ञ डॉ. रवींद्र मेहता के अनुसार, “भारत ने पाकिस्तान को बिना झुके बातचीत की मेज़ पर आने को बाध्य किया। यह विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की संयुक्त सफलता है।”
भारतीय जनता की उम्मीदें और सेनाओं की सख्ती
सीमावर्ती इलाकों के लाखों लोगों के लिए यह युद्धविराम एक बड़ी राहत है। गोलियों की आवाज़ और बंकरों में छिपने की विवशता ने उनके जीवन को भयभीत कर रखा था। पुंछ के एक स्कूल शिक्षक बलराज सिंह कहते हैं, “हम नहीं जानते कि ये शांति कितनी टिकेगी, लेकिन फिलहाल इतना ही काफी है कि बच्चे स्कूल जा सकें।”
वहीं सेना की सतर्कता बरकरार है। सेना प्रमुख ने अपने आदेशों में कहा है कि अगर पाकिस्तान की ओर से कोई उकसावे की कार्रवाई होती है तो जवाब पहले से भी कठोर होगा।
पूर्व रक्षा सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) विनोद भाटिया कहते हैं, “हमें पाकिस्तान के इतिहास को कभी नहीं भूलना चाहिए। यह युद्धविराम भी तभी कारगर होगा जब निगरानी और जवाबदेही मजबूत होगी।”
आगे की राह: संभावनाएं, संदेह और रणनीति
भारत-पाक युद्धविराम का इतिहास बताता है कि यह पहली बार नहीं है जब ऐसे प्रयास हुए हैं। लेकिन हर बार पाकिस्तान की ओर से भरोसे को तोड़ा गया है – करगिल, 26/11, उड़ी, पुलवामा सब इसी शांति की आड़ में हुए धोखे की यादें हैं।
इस बार भी यही सवाल उठता है – क्या पाकिस्तान बदला है? या यह फिर एक अस्थायी विराम है ताकि वह अपनी आतंकी रणनीतियों को पुनर्गठित कर सके?
भारत इस बार कहीं अधिक सजग है। कूटनीतिक स्तर पर वैश्विक समर्थन और सैन्य दृष्टि से सशक्त तैयारियां इस युद्धविराम को गंभीरता से निभाने की स्थिति में लाती हैं। अगर पाकिस्तान धोखाधड़ी करता है, तो भारत का जवाब न सिर्फ स्थानीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सख्त और निर्णायक होगा।
शांति की पहल या साजिश का विराम?
10 मई 2025 को लागू यह युद्धविराम भारत की सूझबूझ, कूटनीतिक पकड़ और वैश्विक जिम्मेदारी का प्रतीक है। यह न केवल सीमा पर गोलियों को विराम देता है, बल्कि जनता को उम्मीद, बच्चों को शिक्षा और किसानों को चैन की नींद देता है।
लेकिन यह विश्वास की परीक्षा भी है। अब यह पाकिस्तान पर है कि वह इस पहल को शांति की शुरुआत बनाए या एक और विश्वासघात का माध्यम।
भारत तैयार है – संवाद के लिए भी और जवाब के लिए भी।