आर्थिक तंगी और मानसिक दबाव: एक परिवार की सामूहिक आत्महत्या से झकझोरा समाज कर्ज, खामोशी और आत्मघात: सिस्टम की नाकामी पर एक सवाल क्या हम समय रहते थाम सकते हैं टूटते इंसान को?

इन्तजार रजा हरिद्वार- आर्थिक तंगी और मानसिक दबाव: एक परिवार की सामूहिक आत्महत्या से झकझोरा समाज
कर्ज, खामोशी और आत्मघात: सिस्टम की नाकामी पर एक सवाल
क्या हम समय रहते थाम सकते हैं टूटते इंसान को?
हरियाणा के पंचकूला में हुई एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को भीतर तक झकझोर दिया है। देहरादून निवासी प्रवीण मित्तल ने अपने पूरे परिवार के साथ सामूहिक आत्महत्या कर ली। घटना की वीभत्सता केवल मौतों की संख्या में नहीं, बल्कि उस दर्द में है जो सालों से परिवार झेल रहा था – आर्थिक तंगी, मानसिक दबाव और सामाजिक असफलता की चुप्पी।
घटना का पूरा घटनाक्रम: धर्म-कथा से लौटते समय मौत की ओर रुख
प्रवीण मित्तल अपने परिवार के साथ बागेश्वर धाम की कथा में भाग लेकर लौट रहे थे। रास्ते में पंचकूला के सेक्टर 27 में उनकी कार सड़क किनारे खड़ी मिली। जब स्थानीय लोगों को शक हुआ और पुलिस पहुंची, तो कार के भीतर का दृश्य मानव संवेदनाओं को कुचल देने वाला था।
कार में छह शव थे — प्रवीण की पत्नी, माता-पिता और तीन बच्चे। ड्राइवर सीट पर बैठे प्रवीण मित्तल गंभीर हालत में जीवित थे। उन्होंने आसपास के लोगों को बताया कि पूरा परिवार भारी कर्ज और मानसिक तनाव से गुजर रहा था, और इसी कारण सभी ने जहर खाकर आत्महत्या की।
बाद में अस्पताल में इलाज के दौरान प्रवीण मित्तल की भी मौत हो गई।
सुसाइड नोट: अपराधबोध और जिम्मेदारी की अंतिम चिट्ठी
पुलिस को मौके से दो पन्नों का सुसाइड नोट मिला। इसमें प्रवीण मित्तल ने लिखा:
- वे इस सामूहिक आत्महत्या के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हैं।
- अपने ससुर को किसी तरह से दोष न देने की अपील की गई है।
- अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी अपने मामा के बेटे को सौंपने की इच्छा जताई है।
यह चिट्ठी उस आत्मा की चीख है जो समाज, व्यवस्था और निजी हालात से जूझती रही, लेकिन समय रहते कहीं से कोई सहारा नहीं मिला।
विफल व्यापार, टूटती उम्मीदें
प्रवीण मित्तल का देहरादून में टूर एंड ट्रैवल्स का कारोबार था। लॉकडाउन के बाद से यह व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ। ग्राहकी कम होती गई, खर्चे बढ़ते गए और कर्ज का पहाड़ खड़ा हो गया।
ऐसे में न कोई सरकारी मदद, न कोई सामाजिक सहारा, और न ही कोई मानसिक परामर्श – परिणामस्वरूप यह परिवार घुट-घुटकर जी रहा था, जब तक आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प नजर नहीं आने लगा।
यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है
आज जब हम आत्महत्या की खबर पढ़ते हैं, तो कुछ पलों के लिए सहानुभूति जताकर आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन क्या हमने कभी गहराई से सोचा है कि ये घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं?
- मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी: भारत में डिप्रेशन, एंग्जायटी, और मानसिक तनाव को अभी भी “कमजोरी” या “पागलपन” समझा जाता है।
- कर्ज और आर्थिक असफलता को अपराध समझना: बिजनेस में घाटा एक सामान्य बात है, लेकिन जब समाज इसे नाकामी का तमगा बना देता है, तो व्यक्ति आत्मग्लानि में डूब जाता है।
- मजबूत सामाजिक सुरक्षा का अभाव: ना कोई काउंसलिंग सुविधा, ना आर्थिक राहत, ना ही मनोवैज्ञानिक मदद — एक टूटते परिवार के पास कोई सहारा नहीं होता।
व्यवस्था और समाज की विफलता: जिम्मेदार कौन?
- क्या बैंकों द्वारा बढ़ाए गए दबावों पर कोई नियंत्रण है?
- क्या राज्य सरकार ने महामारी के बाद संकटग्रस्त व्यापारियों के लिए कोई प्रभावी योजना चलाई?
- क्या स्थानीय समाज या प्रशासन की कोई जवाबदेही है?
इन सवालों से बचना अब अपराध के बराबर है। जब कोई इंसान पूरे परिवार के साथ अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेता है, तो यह केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं होता — यह व्यवस्था की सामूहिक विफलता है।
समय रहते क्या किया जा सकता था?
- मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए।
- व्यवसायिक विफलताओं को सामाजिक शर्म का कारण बनने से रोका जाए।
- प्रशासनिक स्तर पर संकटग्रस्त परिवारों की पहचान और सहायता के लिए स्थानीय निकायों को प्रशिक्षित किया जाए।
- आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइनों को गांव-कस्बों तक पहुंचाया जाए।
अंतिम सवाल: क्या हम फिर चुप रहेंगे?
यह घटना एक बार फिर हमें आईना दिखाती है कि हम कितने असंवेदनशील हो चुके हैं। एक व्यक्ति अपनी असफलता का बोझ इतना अकेले ढोता है कि पूरे परिवार के साथ जीवन समाप्त कर देता है।
अगर अब भी हम नहीं जागे, तो अगली खबर किसी और प्रवीण मित्तल की होगी।
समय रहते मदद मांगना कमजोरी नहीं, साहस है। और मदद देना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है।
यदि आप या आपके आसपास कोई आर्थिक या मानसिक दबाव से जूझ रहा हो, तो भारत सरकार द्वारा संचालित हेल्पलाइन नंबर 9152987821 या किसी मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें। आपका जीवन मूल्यवान है — आपके अपनों के लिए और समाज के लिए।