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माधोपुर में हुए वसीम जिम ट्रेनर प्रकरण में पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के आदेश पर लगी न्यायिक रोक,, प्रभारी सत्र न्यायाधीश हरिद्वार का महत्वपूर्ण आदेश — उपनिरीक्षक शरद सिंह व अन्य की निगरानी याचिका स्वीकार,, न्यायालय ने कहा— प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश पर सुनवाई तक अमल रोका जाए,, सुनवाई के दौरान रखे गए विधिक तर्क,, अधिवक्ता राकेश कुमार सिंह ने माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड के पूर्व आदेशों का हवाला दिया

इन्तजार रजा हरिद्वार- माधोपुर में हुए वसीम जिम ट्रेनर प्रकरण में पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के आदेश पर लगी न्यायिक रोक,,

प्रभारी सत्र न्यायाधीश हरिद्वार का महत्वपूर्ण आदेश — उपनिरीक्षक शरद सिंह व अन्य की निगरानी याचिका स्वीकार,,

न्यायालय ने कहा— प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश पर सुनवाई तक अमल रोका जाए,,

सुनवाई के दौरान रखे गए विधिक तर्क,, अधिवक्ता राकेश कुमार सिंह ने माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड के पूर्व आदेशों का हवाला दिया

हरिद्वार | डेली लाइव उत्तराखंड ब्यूरो

हरिद्वार की न्यायिक व्यवस्था से जुड़ा एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसमें गंगनहर कोतवाली क्षेत्र के उपनिरीक्षक शरद सिंह, कांस्टेबल प्रवीण सैनी व सुनील कुमार के विरुद्ध मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हरिद्वार द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। इस मामले में सत्र न्यायाधीश अनिरुद्ध भट्ट की अदालत ने 4 जुलाई को महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए उक्त आदेश के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी है।

क्या है पूरा मामला

प्रकरण की शुरुआत हुई एक फौजदारी प्रकीर्ण प्रार्थना पत्र से, जो अल्लाउद्दीन नामक व्यक्ति द्वारा उपनिरीक्षक शरद सिंह और उनके साथियों के विरुद्ध दायर किया गया था। यह प्रार्थना पत्र भारतीय न्याय संहिता की धारा 175(3) बीएनएसएस के अंतर्गत दाखिल किया गया था। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हरिद्वार ने दिनांक 02.07.2025 को इस पर आदेश पारित करते हुए संबंधित थाना प्रभारी को निर्देशित किया था कि वह उपनिरीक्षक शरद सिंह, कांस्टेबल सुनील कुमार, कांस्टेबल प्रवीण सैनी एवं तीन अज्ञात पुलिसकर्मियों के विरुद्ध सुसंगत धाराओं में तत्काल प्राथमिकी दर्ज कर, उसकी प्रति 24 घंटे के भीतर न्यायालय में प्रस्तुत करें।

निगरानी याचिका पर न्यायालय की सुनवाई

इस आदेश को उपनिरीक्षक शरद सिंह व अन्य ने सत्र न्यायालय में चुनौती दी और एक फौजदारी निगरानी याचिका (संख्या 153/2025, सीआईएस संख्या 159/2025) दाखिल की। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राकेश कुमार सिंह ने पक्ष रखा, जबकि राज्य की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) उपस्थित रहे। याचिकाकर्ता की ओर से यह मांग की गई कि आदेश के क्रियान्वयन को तत्काल स्थगित किया जाए अन्यथा उन्हें अपूरणीय क्षति होगी।

थाना गंगनहर से जवाब— कोई एफआईआर दर्ज नहीं

न्यायालय ने 03.07.2025 को आदेश पारित करते हुए संबंधित थाना गंगनहर से यह आख्या तलब की थी कि क्या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुपालन में कोई एफआईआर पंजीकृत हुई है या नहीं। थाना गंगनहर से प्राप्त जवाब के अनुसार, अब तक आरोपितों के विरुद्ध कोई अभियोग पंजीकृत नहीं किया गया है।

सुनवाई के दौरान रखे गए विधिक तर्क

अधिवक्ता राकेश कुमार सिंह ने माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड के पूर्व आदेशों का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेशों के विरुद्ध निगरानी याचिका योजित की जा सकती है। उन्हीं दृष्टांतों का पालन करते हुए सत्र न्यायालय ने फौजदारी निगरानी याचिका को श्रवण हेतु अंगीकृत किया।

सत्र न्यायालय का आदेश

सत्र न्यायाधीश अनिरुद्ध भट्ट ने अपने आदेश में कहा कि चूंकि अब तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश दिनांक 02.07.2025 के क्रियान्वयन को सुनवाई की अगली तिथि तक के लिए स्थगित किया जाता है। यह स्थगन इस शर्त पर किया गया कि निगरानीकर्ता इस अवधि में कोई अन्य स्थगन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत नहीं करेंगे।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय तात्कालिक रूप से न्यायिक संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है और मामले की पूरी सुनवाई 21 जुलाई 2025 को होगी।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • अवलोकन: मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।
  • चुनौती: आदेश को उपनिरीक्षक शरद सिंह व अन्य ने सत्र न्यायालय में चुनौती दी।
  • स्थिति: थाने द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं की गई है।
  • फैसला: आदेश के क्रियान्वयन पर सत्र न्यायालय ने स्थगन प्रदान किया है।
  • अगली सुनवाई: 21 जुलाई 2025 को नियत।

न्यायिक स्थगन का असर – बड़ा सवाल: पुलिस पर झूठा आरोप या दायित्व से बचाव?

इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वाकई आरोपियों पर लगाए गए आरोप सच्चे हैं या यह एक सुनियोजित कानूनी दबाव का हिस्सा है? यह तो आने वाली न्यायिक प्रक्रिया ही तय करेगी। हालांकि न्यायालय द्वारा प्रथम दृष्टया आदेश पर रोक लगाना यह दर्शाता है कि प्रकरण में कई तथ्यों की गहन विवेचना अभी शेष है।


(रिपोर्ट: इंतजार रज़ा, डेली लाइव उत्तराखंड)
दिनांक: 05 जुलाई 2025

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