सरकारी स्कूलों में शोषण का शिकार बनीं भोजन माताएं, मानदेय वृद्धि, पेंशन और बीमा की मांग को लेकर फूटा आक्रोश, जॉइंट मजिस्ट्रेट कार्यालय पर नारेबाजी कर ज्ञापन सौंपा “अब चुप नहीं बैठेंगी”: भोजन माताओं की चेतावनी

इन्तजार रजा हरिद्वार- सरकारी स्कूलों में शोषण का शिकार बनीं भोजन माताएं,
मानदेय वृद्धि, पेंशन और बीमा की मांग को लेकर फूटा आक्रोश,
जॉइंट मजिस्ट्रेट कार्यालय पर नारेबाजी और ज्ञापन सौंप प्रदर्शन समाप्त
रुड़की – उत्तराखंड के हरिद्वार जनपद अंतर्गत रुड़की क्षेत्र की सैकड़ों भोजन माताओं ने शनिवार को अपने हक और अधिकारों की मांग को लेकर जॉइंट मजिस्ट्रेट कार्यालय पर जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान भोजन माताओं ने सरकार और शिक्षा विभाग के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और कहा कि वे अब और अन्याय नहीं सहेंगी। प्रदर्शन के बाद भोजन माताओं ने जॉइंट मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपकर अपनी मांगों को जल्द से जल्द पूरा करने की चेतावनी दी।
भोजन माताओं की बदहाल स्थिति: कम मानदेय, अधिक कार्यभार
प्रदर्शन कर रही भोजन माताओं ने कहा कि वे वर्षों से सरकारी स्कूलों में दोपहर का भोजन (मिड डे मील) तैयार कर बच्चों को खिला रही हैं, लेकिन बदले में उन्हें जो मानदेय दिया जाता है वह बेहद अपमानजनक है। मात्र ₹2,000 से ₹3,000 प्रतिमाह के मानदेय में उन्हें झाड़ू लगाना, शौचालय साफ करना, बर्तन धोना, खाना बनाना और अन्य स्कूल कार्य करने पड़ते हैं।
भोजन माताओं का कहना है कि यह कार्यभार किसी नौकर की तरह दिया जा रहा है, जबकि उन्हें सम्मानित कार्यकर्ता माना जाना चाहिए। कई स्कूलों में प्रधानाचार्य और शिक्षक उन्हें घरेलू नौकरों की तरह काम लेने पर मजबूर करते हैं।
ठेका प्रथा समाप्त करने और बीमा-पेंशन की मांग
प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहीं काजल कटारियां, जो कि राष्ट्रीय मध्यान भोजन रसोईया एकता मंच की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, ने स्पष्ट कहा कि सरकार मिड डे मील योजना में ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा देकर भोजन माताओं का शोषण कर रही है। उन्होंने मांग की कि:
- मिड डे मील योजना में ठेका प्रथा तत्काल समाप्त की जाए।
- भोजन माताओं को हर महीने की पहली तारीख को मानदेय दिया जाए।
- ड्यूटी के दौरान घायल होने या मृत्यु की स्थिति में कम से कम ₹5 लाख तक का बीमा लाभ मिले।
- 60 वर्ष की आयु के बाद भोजन माताओं को पेंशन सुविधा मिले।
- रसोई घरों में गैस सुविधा सुनिश्चित की जाए, लकड़ी और चूल्हे की व्यवस्था समाप्त हो।
- बच्चों की न्यूनतम संख्या की अनिवार्यता समाप्त की जाए जिससे रसोईया की नौकरी सुरक्षित रहे।
- राजनीतिक कारणों या निजी द्वेष से भोजन माताओं को हटाने की प्रवृत्ति पर रोक लगे।
“अब चुप नहीं बैठेंगी”: भोजन माताओं की चेतावनी
प्रदर्शन में शामिल कई भोजन माताओं ने अपने दर्द साझा किए। एक भोजन माता ने कहा, “हम सुबह 7 बजे स्कूल आती हैं और दोपहर 3 बजे तक काम करती हैं। झाड़ू-पोछा, बर्तन, सफाई और बच्चों को खाना खिलाना—सबकुछ करती हैं। फिर भी हमसे नौकरों जैसा व्यवहार किया जाता है। हम इंसान हैं, मजदूर नहीं।”
एक अन्य भोजन माता ने बताया कि “पिछले तीन महीनों से मानदेय नहीं मिला है। बिजली का बिल भरना मुश्किल हो गया है। गैस सिलेंडर के लिए हमें उधार मांगना पड़ता है। ऐसे में हम कब तक चुप रहें?”
कई भोजन माताएं प्रदर्शन के दौरान भावुक हो गईं और आंसुओं के साथ अपनी समस्याएं सुनाईं। सभी ने एक स्वर में कहा कि अगर सरकार ने जल्द कोई समाधान नहीं किया, तो वे जिलाधिकारी कार्यालय तक बड़ा आंदोलन करेंगी।
प्रशासन से मिला आश्वासन, लेकिन आंदोलन रहेगा जारी
जॉइंट मजिस्ट्रेट कार्यालय में ज्ञापन सौंपने के दौरान प्रशासन की ओर से भोजन माताओं को जल्द समस्याओं पर विचार करने का आश्वासन दिया गया। लेकिन प्रदर्शन कर रहीं माताओं का कहना है कि वे केवल आश्वासन से नहीं, ठोस कार्रवाई से संतुष्ट होंगी।
राष्ट्रीय अध्यक्ष काजल कटारियां ने कहा कि अगर मांगें पूरी नहीं हुईं, तो उत्तराखंड में प्रदेशव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी कि इस बार भोजन माताएं सरकार को उनके वादों की याद दिलाने के लिए मजबूर होंगी। रुड़की की भोजन माताएं सिर्फ स्कूलों में खाना पकाने वाली महिलाएं नहीं हैं, बल्कि वे एक आंदोलन की प्रतीक बन चुकी हैं। उनका आक्रोश इस बात का संकेत है कि वर्षों से दबे हुए स्वर अब मुखर हो चुके हैं। अगर सरकार ने इस आवाज को अनसुना किया, तो यह आंदोलन किसी बड़े जनांदोलन का रूप ले सकता है।
यह संघर्ष केवल मानदेय का नहीं, बल्कि सम्मान, सुरक्षा और सामाजिक न्याय का है।