रुड़की में वन विभाग की बड़ी कार्रवाई, पिंजरों में कैद बेजुबान तोतों को दिलाई आज़ादी, अवैध पक्षी व्यापार के पीछे छुपा है बड़ा रैकेट, वन विभाग की सतर्कता, जागरूकता और आगे की योजना,

इन्तजार रजा हरिद्वार- रुड़की में वन विभाग की बड़ी कार्रवाई,
पिंजरों में कैद बेजुबान तोतों को दिलाई आज़ादी,
अवैध पक्षी व्यापार के पीछे छुपा है बड़ा रैकेट,
वन विभाग की सतर्कता, जागरूकता और आगे की योजना,
1. छापेमारी से खुला अवैध पक्षी व्यापार का राज
रुड़की: उत्तराखंड के रुड़की शहर में मंगलवार को एक ऐसी घटना घटी जिसने वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। रुड़की के मछली मोहल्ले में वन विभाग की टीम ने छापेमारी कर दर्जनों तोतों को पिंजरों से मुक्त कराया। ये तोते बेहद खराब हालत में, तेज धूप और गर्मी में तड़पते हुए पाए गए। इस दौरान दो लोगों को हिरासत में लिया गया है और पूछताछ जारी है। अधिकारियों को शक है कि इस पूरे प्रकरण के पीछे एक बड़ा तस्करी रैकेट काम कर रहा है, जिसकी जड़ें आसपास के जिलों तक फैली हो सकती हैं।
इस कार्रवाई का नेतृत्व वन विभाग के चर्चित दरोगा आशुतोष नीम ने किया। उन्हें एक गुप्त सूचना मिली थी कि एक पुराने मकान की छत पर बड़ी संख्या में पक्षियों को कैद कर रखा गया है। टीम ने बिना देर किए तत्काल मौके पर पहुंचकर छापा मारा। जब वे छत पर पहुंचे, तो वहां मौजूद दृश्य देखकर सभी हैरान रह गए—कई लोहे के पिंजरों में दर्जनों तोते कैद थे। कुछ पक्षी बीमार और निर्जीव अवस्था में मिले।
वन विभाग के उप प्रभागीय अधिकारी डी.पी. बौड़ाई और वन सुरक्षा बल के कर्मचारी मनोज भारती भी इस कार्रवाई में मौजूद थे। उन्होंने बताया कि जब्त किए गए पक्षियों को तुरंत विभागीय कार्यालय लाया गया, जहां उनकी जांच कर उन्हें पुनः प्राकृतिक वातावरण में छोड़ने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
2. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनदेखी और कानूनी प्रावधान
भारत में पक्षियों और अन्य वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 लागू है। इस अधिनियम के अंतर्गत भारत के सभी पक्षियों और जानवरों को कानूनन सुरक्षा प्राप्त है। तोता, विशेष रूप से अलेक्जेंड्रियन पैराकीट, रोज़-रिंग्ड पैराकीट और अन्य प्रजातियाँ, अधिनियम की अनुसूची-IV में शामिल हैं। इसका मतलब है कि इन्हें पकड़ना, पिंजरे में रखना, खरीदना-बेचना या इनकी तस्करी करना पूरी तरह गैरकानूनी है।
इस अधिनियम के तहत दोषियों को तीन साल तक की सज़ा, 25,000 रुपये तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। यह अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती श्रेणी में आता है। बावजूद इसके, ऐसे अपराधों की संख्या में कमी नहीं आ रही है। पक्षी तस्करी एक ऐसा अपराध है जो बड़े स्तर पर संगठित होकर होता है, और इसमें स्थानीय व्यापारियों से लेकर बड़े अंतरराज्यीय गिरोह तक शामिल हो सकते हैं।
वन अधिकारियों का कहना है कि यह छापेमारी केवल शुरुआत है, और विभाग अब इस पूरे रैकेट की परतें उधेड़ने की दिशा में कार्य कर रहा है। पूछताछ के दौरान हिरासत में लिए गए संदिग्धों ने कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी है, जिसके आधार पर आगे की छापेमारी की तैयारी चल रही है।
3. पर्यावरण, समाज और पक्षियों पर दुष्प्रभाव
पक्षियों को पिंजरे में कैद करना केवल एक नैतिक अपराध नहीं है, बल्कि इसका सीधा प्रभाव पर्यावरणीय संतुलन पर भी पड़ता है। तोते जैसे पक्षी न केवल प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा होते हैं, बल्कि वे बीज प्रसारण, कीट नियंत्रण और पॉलीनेशन (परागण) में भी भूमिका निभाते हैं। जब इन्हें उनके प्राकृतिक आवास से अलग किया जाता है, तो यह जैव विविधता को प्रभावित करता है।
इसके अलावा, पिंजरों में बंद पक्षियों की मानसिक और शारीरिक स्थिति तेजी से बिगड़ती है। तेज धूप, पर्याप्त भोजन-पानी की कमी और उड़ान की स्वतंत्रता छिन जाने से वे अवसाद, संक्रमण और मृत्यु तक का शिकार हो जाते हैं। इस अवैध व्यापार से बच्चों और समाज पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है—यह उनके मन में यह छवि बैठाता है कि जीवों को बंधक बनाना सामान्य है।
अवैध पक्षी व्यापार का एक और पहलू है—इसका संबंध मानव तस्करी, हथियार तस्करी और मादक पदार्थों के व्यापार जैसे संगठित अपराधों से जुड़ सकता है। कई बार ऐसे मामलों में बड़े गैंग संलिप्त पाए गए हैं जो पक्षियों को सिर्फ शो-पीस या घरेलू शौक के लिए नहीं, बल्कि तांत्रिक क्रियाओं और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के लिए बेचते हैं।
4. जागरूकता, पुनर्वास और आगे की कार्य योजना
इस कार्रवाई के बाद वन विभाग ने स्पष्ट किया है कि इस प्रकार की घटनाओं पर अब और कठोर रुख अपनाया जाएगा। विभाग की योजना है कि न केवल तस्करी के मामलों पर नजर रखी जाए, बल्कि स्थानीय स्तर पर जन-जागरूकता अभियान भी चलाए जाएं। विभाग स्कूलों, मोहल्लों और धार्मिक स्थलों पर जाकर लोगों को बताएगा कि वन्यजीवों का संरक्षण क्यों ज़रूरी है और उन्हें कैद में रखना क्यों अपराध है।
इसके अलावा, विभाग स्थानीय पशु चिकित्सकों और वन्यजीव विशेषज्ञों के सहयोग से पकड़े गए पक्षियों के स्वास्थ्य की जांच करवा रहा है। बीमार पक्षियों का इलाज किया जा रहा है और उन्हें जल्द ही जंगलों में छोड़ा जाएगा।
पुनर्वास की प्रक्रिया में राजाजी नेशनल पार्क, हरिद्वार रेंज और शिवालिक वन क्षेत्र जैसे सुरक्षित वन क्षेत्रों का चयन किया गया है, जहां पक्षियों को धीरे-धीरे प्राकृतिक माहौल में छोड़ा जाएगा।
वन विभाग ने यह भी कहा है कि नागरिकों को आगे आकर ऐसी गतिविधियों की जानकारी देनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति देखता है कि किसी पक्षी को कैद में रखा गया है या उसकी अवैध बिक्री हो रही है, तो वह तत्काल वन विभाग की हेल्पलाइन या पुलिस को सूचना दे सकता है। गुप्त सूचना देने वालों की पहचान गुप्त रखी जाएगी और उन्हें विभाग द्वारा सम्मानित भी किया जा सकता है।
रुड़की की यह घटना एक उदाहरण है कि किस तरह सजगता और त्वरित कार्रवाई से बेजुबान जीवों को यातना से मुक्ति दिलाई जा सकती है। यह न केवल वन विभाग की सक्रियता का परिणाम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अब समय आ गया है जब समाज को वन्यजीवों के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। पिंजरों में कैद रंग-बिरंगे तोते देखने में भले सुंदर लगते हों, लेकिन उनकी चुप्पी उनके दर्द की गवाही होती है। आवश्यकता है कि कानून के साथ-साथ संवेदनशीलता के आधार पर भी ऐसे मामलों से निपटा जाए।