हरिद्वार स्थित हयात होटल में solvent के बड़े ब्रांड निर्माताओं deepak fertilizers ,अदानी और मनाली ग्रुप के द्वारा दवाइयां बनाने में प्रयोग होने वाले सॉल्वेंट की गुणवत्ता जांच एवं खरीद-फरोख्त, सम्बंधित एवं संरक्षण, मानकों के अनुरूप टेस्टिंग करने के सम्बंधित जानकारियां साझा करने हेतु सेमिनार आयोजित
सेमिनार का अनीता भारती ड्रग्स इंस्पेक्टर हरिद्वार एवं कार्यक्रम के आयोजक मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर शुभारंभ किया

इन्तजार रजा हरिद्वार-हरिद्वार स्थित हयात होटल में solvent के बड़े ब्रांड निर्माताओं deepak fertilizers ,अदानी और मनाली ग्रुप के द्वारा दवाइयां बनाने में प्रयोग होने वाले सॉल्वेंट की गुणवत्ता जांच एवं खरीद-फरोख्त, सम्बंधित एवं संरक्षण, मानकों के अनुरूप टेस्टिंग करने के सम्बंधित जानकारियां साझा करने हेतु सेमिनार आयोजित

सेमिनार में प्रख्यात दवाएं बनाने वाली फार्मा कंपनियो ड्रग्स कंट्रोल विभाग और हरिद्वार, रुड़की,राज्यों के दवा / Solvents निर्माता शामिल हुए! दवाईयों का उत्पादन उच्चतम करने एवं सही तरीके से मानकों के आधार पर करने से सम्बंधित, व्याख्यान करने हेतु एफडीए महाराष्ट्र के सेवानिवृत्त विकास बियानी एवं सोलवैंट निर्माताओ के एक्सपर्ट द्वारा किया गया अनीता भारती ड्रग्स इंस्पेक्टर हरिद्वार द्वारा बताया गया कि दवाईयों के उत्पादन में ए.पी.आई, सौलवैंट एंड एक्सपीएंट तीनों का उत्तम क्वालिटी का होना आवश्यक है
जो कि दवाइयों की गुणवत्ता निर्धारित करती है पिछले कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें आई.पी.ए पी.जी ,डी.ई.जी की क्वालिटी एवं सही टेस्टिंग न होने की वजह से घटनाऐं देखी गई है, इस प्रकार की कोई भी घटना दोबारा न हो इसके लिए सख्त कदम उठाए गए हैं और कंपनी वालो को निश्चित किया गया है कि उपरोक्त सभी के मानकों के आधार पर टेस्टिंग करने एवं खरा उतरने पर ही उसको मार्केट में भेजा जाएं.
हरिद्वार ड्रग्स इंस्पेक्टर अनीता भारती ने सख्त निर्देश दिए की दवा निर्माता जिस से भी कच्चा माल , सॉल्वेंट की खरीद-फरोख्त की जाती है तो उसकी भौतिक जांच अवश्य कराई जाए, जिस से नकली supply पर रोक लगा पाएंगे.
इसके लिए कैसे कच्चे माल ,सोलवैंट का चयन करें ताकि दवाएं मानकों के अनुसार निर्धारित टर्म एंड कंडीशन के अनुरूप बनाई ,ली जा सके सभी फ़ार्म कंपनीयों के प्रतिनिधियों ने दवाओ के मैकिंग फार्मुले से लेकर सीडीएससीओ के पटल तक प्रभावी रुप से प्रदर्शित और सेंपलिंग हो, पास आउट हो इसके विचारों-प्रचार के माध्यम से जानकारी और एडवाइजरी साझा की गई
दवाओं की गुणवत्ता का सवाल ?
दवाओं के सैंपल फेल होना बहुत गंभीर मामला है, क्योंकि यह लोगों के स्वास्थ्य और जीवन से जुड़ा है. ऐसे में, दवाओं की खरीद और अन्य में सावधान रहने जरूरत है सैंपल फेल होने के बाद ड्रग्स विभाग ने सभी दवाओं के बैच बाजार से उठाने और कार्रवाई करने के निर्देश दिये थे, दवा कंपनियां मुनाफे के लिए लोगों की जिंदगी को दांव पर नहीं लगाया जाए. हालांकि उत्तराखंड हरिद्वार रुड़की के नाम से फेल दवाओ की निर्माता कंपनियों की पड़ताल के बाद खुलासा हुआ कि ये कुछ कंपनियां भले ही नाम उत्तराखंड का लिख रही हो लेकिन उत्तराखंड में है ही नहीं ,
दवाइयों के सैंपल फ़ेल होने की वजह ये हो सकती है
दवा कंपनियां मुनाफ़े के लिए लोगों की जान को खतरे में डालती हैं. दवाइयों को निर्धारित तापमान पर स्टोर नहीं किया जाता. दवाइयों की गुणवत्ता की जांच में तय मानकों पर खरा नहीं उतरने वाली दवाइयों की गुणवत्ता की जांच के लिए केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और राज्य दवा नियंत्रक की जांच होती है. दवाइयों की गुणवत्ता की जांच में तय मानकों पर खरा नहीं उतरने वाली दवाओं की खेप को तुरंत बाज़ार से हटा लिया जाता है. दवाइयों की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए कई तरीके विकसित किए गए हैं.
दवाइयों की ख़रीद के समय सावधानी बरतने की ज़रूरत है.
ड्रग्स कंट्रोल से जुड़े विभागों ने फ़ार्मा कंपनियों को कई तरह के निर्देश दिए हैं. इनमें दवाओं पर बार कोड लगाना, नकली दवाओं से निपटना, उचित गुणवत्ता सुनिश्चित करना शामिल है.
दवाओं पर बार कोड लगाना
ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 में संशोधन करके, फ़ार्मा कंपनियों को अपने ब्रैंड पर H2/QR कोड लगाना अनिवार्य कर दिया गया है. इससे नकली दवाओं पर लगाम लग सकेगी और लोगों को असली दवा मिल सकेगी. नकली दवाओं से निपटना केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने अपनी रिपोर्ट में कई दवाओं के नमूनों को मानक गुणवत्ता का नहीं बताया था. इनमें पैरासिटामोल, पैन डी, कैल्शियम और विटामिन डी3 की खुराक, तथा मधुमेह रोधी गोलियां शामिल थीं. गुणवत्ता सुनिश्चित करना फ़ार्मा कंपनियों को दवाओं के निर्माण में बेंज़ीन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. फ़ार्मा कंपनियों को अपने उत्पादों की गुणवत्ता, पहचान और selflife सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक रूप से ठोस प्रयोगशाला नियंत्रण स्थापित करना होगा फ़ार्मा कंपनियों पर सख्ती बढ़ाने के लिए, डिपार्टमेंट ऑफ़ फ़ार्मा ने revised GMP की शुरुआत की है.
दवा कंपनियों के लिए सरकार की नई गाइडलाइन, WHO /GMP मानक का पालन करने का निर्देश
स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवाओं के उत्पादन से जुड़ी नई गाइडलाइन जारी की है। इसमें कहा गया है कि अब देश की फार्मास्यूटिकल कंपनियों को दवा बनाने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक का पालन करना होगा। दवा निर्माताओं को अपने उत्पादों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेनी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि जो दवा बनाई गई है उससे मरीजों को किसी तरह का जोखिम
स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवाओं के उत्पादन से जुड़ी नई गाइडलाइन जारी की है। इसमें कहा गया है कि अब देश की फार्मास्यूटिकल कंपनियों को दवा बनाने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक का पालन करना होगा। दवा निर्माताओं को अपने उत्पादों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेनी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि जो दवा बनाई गई है, उससे मरीजों को किसी तरह का जोखिम न हो। फार्मा कंपनियों को लाइसेंस के मापदंडों के अनुसार ही दवा बनानी होगी। दवाओं को पूरी तरह से टेस्टिंग के बाद ही मार्केट में उतारना होगा।
संशोधित गाइडलाइन में क्या कहा गया?
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी संशोधित गाइडलाइन में दवाओं को वापस लेने के बारे में भी निर्देश दिया गया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि खराब दवाओं को वापस लेने से पहले लाइसेंसिंग अथारिटी को सूचित करना होगा। इसके साथ ही दवा को क्यों वापस लिया जा रहा है इसके बारे में विस्तार से रिपोर्ट सौंपनी होगी। बताना होगा कि दवाओं में ऐसी क्या खराबी थी जो इसे वापस लेने की जरूरत पड़ी। अभी तक किसी भी दवा को वापस लेने से पहले लाइसेंसिंग अथारिटी को जानकारी देने की व्यवस्था नहीं थी।दवा कंपनियों से कहा गया है कि वह अपनी कंपनी में एक फार्माकोविजिलेंस सिस्टम बनाए। यह एक ऐसी निगरानी प्रणाली होगी जो कंपनी की दवाओं की क्वालिटी पर नजर रखेगी। अगर दवा में किसी प्रकार की कमी है और वापस लेने की नौबत आती है तो इसकी भूमिका अहम होगी। यह सिस्टम ही लाइसेंसिंग अथारिटी को रिपोर्ट सौंपेगी। यह बताएगी कि दवा में क्या कमी रह गई और इसके सेवन से क्या नुकसान हो सकते हैं। नई शेड्यूल एम गाइडलाइन को 250 करोड़ रुपए से ज्यादा टर्नओवर वाली कंपनियों को छह महीने में पालन करना होगा। वहीं इससे कम टर्नओवर वाली कंपनियों को इसके लिए एक साल तक का वक्त दिया जाएगा।
भारतीय दवाओं की गुणवत्ता पर उठे सवाल
दवा कंपनियों के लिए नई गाइडलाइन के साथ नोटिफिकेशन 28 दिसंबर को जारी किया गया था। हालांकि शनिवार को मीडिया में यह बात सामने आई। बीते कुछ सालों में भारतीय दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं। कई देशों ने शिकायत की थी कि भारत में तैयार कफ सिरप पीने के बाद बच्चों की मौत हुई है। ग्लोबल मीडिया में भारतीय कफ सिरफ से मौत की खबरें आने के बाद से केंद्र सरकार सक्रिय है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद इस इंडस्ट्री की छवि सुधारने की कोशिशों में जुटे हैं।