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साबरी झंडा कुशाई की रस्म आज: कलियर में रूहानी कैफ़ियत का आलम,, बरेली से हाफ़िज़ सैय्यद मेराज हुसैन साबरी की अगुवाई में उठा साबरी झंडा, बरेली से आये जत्थे का हुआ शान-ओ-शौकत से इस्तक़बाल,, महफ़िल-ए-अकीदत और भाईचारे से गूंज उठा दरगाह साबिर पाक का आंगन,, रूहानी माहौल से सराबोर कलियर

बरेली से कलियर तक पैदल जत्थे का सफ़र मुकम्मल,, हाफ़िज़ सैय्यद मेराज हुसैन साबरी ने किया झंडे का आग़ाज़,, मोहब्बत और भाईचारे के पैग़ाम से रोशन हुआ उर्स मुबारक

इन्तजार रजा हरिद्वार- साबरी झंडा कुशाई की रस्म आज: कलियर में रूहानी कैफ़ियत का आलम,,

बरेली से हाफ़िज़ सैय्यद मेराज हुसैन साबरी की अगुवाई में उठा साबरी झंडा, बरेली से आये जत्थे का हुआ शान-ओ-शौकत से इस्तक़बाल,,

महफ़िल-ए-अकीदत और भाईचारे से गूंज उठा दरगाह साबिर पाक का आंगन,,

रूहानी माहौल से सराबोर कलियर

औलिया-ए-कामिल हज़रत साबिर पाक रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह पर आज झंडा कुशाई की परंपरागत और पुरअसर रस्म अंजाम दी जा रही है। असर की नमाज़ के बाद सज्जादा नशीन शाह अली एजाज साबरी की सरपरस्ती में यह रस्म अदा होगी। दरगाह का आंगन सुबह से ही नात, सलाम और दरूद की सदाओं से गूंज रहा है। हर तरफ़ अकीदतमंदों का जनसैलाब उमड़ा हुआ है।

झंडा कुशाई की यह रस्म दरगाह के सालाना उर्स मुबारक का आग़ाज़ मानी जाती है। जब यह झंडा बुलंद होता है तो मानो आसमान और ज़मीन पर मोहब्बत और भाईचारे का पैग़ाम उतर आता है।

बरेली से उठे झंडे का सफ़र

इस बार का झंडा बरेली शरीफ़ से हाफ़िज़ सैय्यद मेराज हुसैन साबरी की सरपरस्ती और अगुवाई में उठा। 10 अगस्त को रवाना हुआ यह जत्था 13 दिन तक लगातार पैदल सफ़र करता हुआ रविवार को कलियर शरीफ़ पहुँचा। इस क़ाफ़िले में 120 अकीदतमंद शामिल रहे।

रास्ते भर रामपुर, मुरादाबाद, नजीबाबाद, नहटौर, ज्वालापुर और रहमतपुर जैसे कई शहरों-कस्बों में जत्थे का ऐतिहासिक स्वागत हुआ। जगह-जगह फूल बरसाए गए, ढोल-नगाड़ों की गूंज सुनाई दी और नारा-ए-तकबीर की सदाएं पूरे माहौल को रूहानी बना गईं।

कलियर शरीफ़ में दाख़िल होने पर भी जब यह जत्था दरगाह की सरज़मीं पर पहुँचा तो लोगों ने फूल बरसाकर इस्तक़बाल किया। गलियों से लेकर दरगाह के दर तक मानो कोई बड़ी ईद का त्योहार मनाया जा रहा हो।

हाफ़िज़ सैय्यद मेराज हुसैन साबरी की अगुवाई

झंडे का यह सफ़र सिर्फ़ पैदल चलने का नाम नहीं, बल्कि मोहब्बत और अकीदत का सफ़र है। हाफ़िज़ सैय्यद मेराज हुसैन साबरी ने बरेली से झंडा उठाते हुए कहा –
“यह सफ़र हमारी रूहानी अकीदत का हिस्सा है। जब हम पैदल चलते हैं तो हमारे हर क़दम के साथ दुआएँ और मोहब्बत जुड़ती चली जाती हैं। यही वजह है कि कलियर पहुँचकर दिल को सुकून और रूह को सुकूनियत हासिल होती है।”

कलियर पहुँचने पर जत्थे का इस्तक़बाल भी उनकी अगुवाई में हुआ। फूल-मालाओं से लादकर अकीदतमंदों ने जत्थे को सम्मान दिया। स्थानीय लोग बड़ी संख्या में इस इस्तक़बाल के गवाह बने।

सफ़र-ए-अकीदत

जत्थे में सूफ़ी वसीम साबरी, सूफ़ी कमाल साबरी, मेराज साबरी, काज़ी रिज़वान, तस्लीम साबरी, जावेद, नदीम, इमरान, गुड्डू, भूरा और सैकड़ों अकीदतमंद शामिल रहे।

एक इस्तखार अमन साबरी (खादिम)ने कहा – “हम हर साल पैदल ही आते हैं। यह हमारी रूहानी अकीदत है। इसमें हमें जो सुकून मिलता है, वह किसी और चीज़ में नहीं।”

एक नौजवान अकीदतमंद जावेद साबरी अब्बासी ने कहा – “हमारे लिए यह सफ़र महज़ पैदल चलना नहीं, बल्कि मोहब्बत और अकीदत का इज़हार है। चाहे मुश्किलात हों, चाहे रास्ता लंबा हो, हम हर साल पैदल ही आते हैं।”

इस सफ़र में लोगों ने एक-दूसरे का सहारा बनकर तकलीफ़ें आसान कीं। दुकानदारों और राहगीरों ने जगह-जगह जलपान और आराम का इंतज़ाम किया। यह नज़ारा गंगा-जमुनी तहज़ीब और इंसानियत का सबसे बड़ा पैग़ाम था।

झंडा कुशाई की अहमियत

दरगाह साबिर पाक की झंडा कुशाई उर्स मुबारक की रूह है। यही रस्म सालाना उर्स की शुरुआत का ऐलान मानी जाती है।

आज जब सज्जादा नशीन शाह अली एजाज साबरी और बुज़ुर्गों की मौजूदगी में झंडा बुलंद किया जाएगा तो हज़ारों अकीदतमंदों की आंखें नम हो जाएँगी। चेहरों पर सुकून और दिलों में मोहब्बत का समंदर उमड़ पड़ेगा।

झंडे का लहराना सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि यह मोहब्बत, अमन और भाईचारे का पैग़ाम है।

देशभर से उमड़े जायरीन

इस मौके पर पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर और नजीबाबाद सहित मुल्क के कोने-कोने से अकीदतमंद कलियर पहुँचे हैं।

मास्टर अजीम साबरी ने कहा –
“साबिर पाक की दरगाह पर आकर दिल को सुकून मिलता है। झंडा कुशाई की रस्म हमारे लिए जन्नती तोहफ़े से कम नहीं है।”

राशीद सभासद पिरान कलियर  ने कहा –
“यहाँ कलियर शरीफ में हमें लगता है कि इंसानियत की असली तालीम यही है कि सब मिलकर मोहब्बत और भाईचारे के साथ जियें।”

दरगाह का रौनक़ और इंतज़ाम

उर्स के आग़ाज़ के साथ ही कलियर की गलियों में चहल-पहल बढ़ गई है। इत्र, तसब्बुह, चादर और तबर्रुक़ात की दुकानें सज चुकी हैं। कव्वालियों और सूफ़ियाना कलाम से महफ़िलें रौनक़ अफ़रोज़ हो रही हैं।

प्रशासन और दरगाह कमेटी की ओर से जायरीनों के लिए सफ़ाई, पानी, सेहत और सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम किए गए हैं। पुलिस और सुरक्षाकर्मी चौकसी पर हैं ताकि जायरीन बेफ़िक्र होकर अपनी अकीदत का इज़हार कर सकें।

भाईचारे और इंसानियत का पैग़ाम

कलियर की दरगाह हमेशा से मोहब्बत और इंसानियत का मरकज़ रही है। यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख और दूसरे धर्मों के लोग बराबरी से आते हैं और अमन-ओ-चैन की दुआ करते हैं।

इस बार की झंडा कुशाई में भी यही नज़ारा देखने को मिला। सभी धर्मों के लोग एक साथ मौजूद रहे और सबने मिलकर दुआएँ कीं। यह नज़ारा सूफ़ियाना तालीम की जीती-जागती मिसाल था – “इश्क़ और भाईचारा ही इंसान की असली पहचान है।”

कलियर शरीफ़ में झंडा कुशाई की रस्म और बरेली से आए जत्थे का इस्तक़बाल इस बात की ताज़ा मिसाल है कि जब मोहब्बत और अकीदत मिलती है तो इंसानियत का असली रंग सामने आता है।

इस साल का झंडा बरेली से हाफ़िज़ सैय्यद मेराज हुसैन साबरी की सरपरस्ती और अगुवाई में उठा, जिसने इस सफ़र को और भी रूहानी और ऐतिहासिक बना दिया।

उनकी रहनुमाई में निकले इस क़ाफ़िले ने अमन, मोहब्बत और भाईचारे का ऐसा पैग़ाम दिया है जो आने वाली नस्लों के लिए भी मिसाल रहेगा।

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