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दादुपुर गोविंदपुर में गंग नहर सिंचाई विभाग की सरकारी ज़मीन पर कब्ज़े का खेल,, दाखिल खारिज पर फंस गए पेंच,, भू-माफिया और फर्जीवाड़े का खेल उजागर, सिस्टम की किरकिरी,, सिंचाई विभागीय लापरवाही ने दिया अवैध निर्माण को बढ़ावा,, विभागीय उदासीनता निर्बलता और न्यायालय की ढिलाई,, अवैध निर्माण और हाईकोर्ट की ढाल,, क्या अब सीएम धामी ने सच में कह दिया कि अब और ढिलाई नहीं.?

इन्तजार रजा हरिद्वार- दादुपुर गोविंदपुर में गंग नहर सिंचाई विभाग की सरकारी ज़मीन पर कब्ज़े का खेल,, दाखिल खारिज पर फंस गए पेंच,,

भू-माफिया और फर्जीवाड़े का खेल उजागर, सिस्टम की किरकिरी,,

सिंचाई विभागीय लापरवाही ने दिया अवैध निर्माण को बढ़ावा,,

विभागीय उदासीनता निर्बलता और न्यायालय की ढिलाई,,

अवैध निर्माण और हाईकोर्ट की ढाल,,

क्या अब सीएम धामी ने सच में कह दिया कि अब और ढिलाई नहीं.?

हरिद्वार जिले के बहादराबाद क्षेत्र में गंगा नहर के किनारे स्थित दादूपुर गोविन्दपुर ग्राम की खसरा संख्या 91 पर भू-माफियाओं द्वारा अवैध कब्ज़ा करने का मामला किसी साधारण विवाद की तरह नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की नाकामी और भ्रष्टाचार की गहरी परतों को उजागर करता है। यह वही ज़मीन है, जिस पर कभी कृषि पट्टा धनीराम नामक किसान के पास था। धनीराम का 1998 में देहांत हो चुका था, लेकिन उनकी मृत्यु के वर्षों बाद अचानक कुछ लोगों ने फर्जीवाड़ा कर इस ज़मीन पर अधिकार जताना शुरू कर दिया।

फर्जी मुकदमे से शुरू हुआ खेल

सिंचाई विभाग उत्तर प्रदेश की इस ज़मीन को कब्जाने के लिए रईस और उसके सहयोगियों ने ऐसा खेल खेला, जिसे समझकर ही आम आदमी दंग रह जाए। उन्होंने मृतक धनीराम के खिलाफ ही उपजिलाधिकारी न्यायालय में काश्तकारी अधिनियम की धारा 59/61 के तहत वाद दायर कर दिया। यह पूरी प्रक्रिया अपने आप में घोर अवैध थी क्योंकि एक मृतक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराना ही कानून की धज्जियां उड़ाने के समान है।

और तो और, सिंचाई विभाग को पक्षकार बनाए बिना ही उपजिलाधिकारी न्यायालय ने एकतरफा फैसला सुनाते हुए रईस के पक्ष में निर्णय दे दिया। यह दिखाता है कि या तो न्यायालय से तथ्य छुपाए गए, या फिर सुनियोजित तरीके से विभाग को दरकिनार कर दिया गया।

विभागीय उदासीनता निर्बलता और न्यायालय की ढिलाई

इस मामले की सबसे खतरनाक परत यह है कि विभाग लगातार अवैध कब्ज़े को चुनौती देता रहा, लेकिन हर बार उसे न्यायालय की देरी और ढीली कार्यवाही का सामना करना पड़ा।

  • 2012 में दिए गए एकतरफा आदेश को विभाग ने चुनौती दी।
  • 2013 में विभाग की पुनर्स्थापना याचिका बिना सुनवाई के खारिज कर दी गई।
  • धनीराम की पत्नी श्रीमती रामप्यारी ने जब प्रार्थना पत्र दिया, तब जाकर आदेश पर रोक लगी और पूर्व निर्णय निरस्त किया गया।
  • विभाग ने निगरानी वाद राजस्व परिषद, देहरादून में दायर किया, लेकिन 2015 में इसे भी खारिज कर दिया गया।

यानी भू-माफिया के पक्ष में हर कदम पर फैसले होते रहे और विभाग सिर्फ कागजी लड़ाई लड़ता रहा।

अवैध निर्माण और हाईकोर्ट की ढाल

2016 में जब रईस और उसके साथी ज़मीन पर बाउंड्रीवाल बनाने लगे तो विभाग ने जिलाधिकारी हरिद्वार से अवैध निर्माण रुकवाने की गुहार लगाई। जिलाधिकारी ने अवैध निर्माण रोकने का आदेश भी दिया, लेकिन मामला यहीं नहीं रुका।

रईस आदि ने तत्काल हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और वहां से 15 जून 2016 को स्थगन आदेश ले आए। इस आदेश ने प्रशासन और विभाग के हाथ पूरी तरह बांध दिए और ज़मीन पर कब्ज़े की साजिश को कानूनी ढाल मिल गई।

राजकीय संपत्ति पर हमला

साफ़ है कि यह मामला सिर्फ एक ज़मीन विवाद नहीं है। यह राजकीय संपत्ति पर सुनियोजित हमला है। सिंचाई विभाग की ज़मीन को फर्जी दस्तावेजों और झूठे मुकदमों के सहारे हड़पने की साज़िश कई सालों से चल रही है। इसमें भू-माफियाओं की चालाकी के साथ-साथ प्रशासनिक लापरवाही और कानूनी पेचिदगियों ने उन्हें लगातार ताकत दी है।

आज हालात यह हैं कि:

  • गंगा नहर के किनारे की भूमि जो सिंचाई व्यवस्था और सरकारी उपयोग के लिए सुरक्षित थी, उस पर अवैध कब्ज़ा हो चुका है।
  • विभाग बार-बार पत्राचार और अनुरोध कर रहा है, लेकिन ज़मीन खाली नहीं हो पा रही।
  • स्थानीय प्रशासन और पुलिस को बार-बार पत्र भेजे जा रहे हैं कि अवैध कब्ज़ा हटाने के लिए बल मुहैया कराया जाए।

सवाल प्रशासन और सिस्टम पर

यह पूरा प्रकरण कई गंभीर सवाल खड़े करता है:

  1. मृतक व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दायर कैसे हो गया?
    क्या उपजिलाधिकारी न्यायालय ने जांच नहीं की?
  2. विभाग को पक्षकार क्यों नहीं बनाया गया?
    क्या यह जानबूझकर की गई चूक थी या किसी दबाव का नतीजा?
  3. निगरानी वाद खारिज होने के बाद अवैध निर्माण रोकने की जिम्मेदारी किसकी थी?
    क्यों भू-माफिया को हाईकोर्ट तक पहुंचने का मौका दिया गया?
  4. स्थानीय प्रशासन और पुलिस की भूमिका क्या रही?
    क्या वे वास्तव में सरकारी संपत्ति बचाने के लिए तत्पर थे या सिर्फ कागजों में कार्रवाई कर रहे थे?

भू-माफियाओं का हौसला बुलंद

हरिद्वार जैसे धार्मिक और पर्यटन नगरी में अगर सरकारी ज़मीन को इस तरह फर्जीवाड़े और दबंगई से हड़पा जा सकता है, तो यह आने वाले समय में बेहद खतरनाक संकेत है। भू-माफिया अब सिर्फ गांव की ज़मीन या छोटे प्लॉट तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अब उनकी नजर सरकारी विभागों की संपत्ति पर भी है।

  • वे नकली दस्तावेज तैयार कर लेते हैं।
  • मृत व्यक्तियों के नाम पर मुकदमे दर्ज कराते हैं।
  • न्यायालय से स्थगन आदेश ले आते हैं।
  • और अंत में प्रशासन की कमजोरी का फायदा उठाकर निर्माण शुरू कर देते हैं।

यह पूरा तंत्र बताता है कि किस तरह संगठित रूप से सरकारी संपत्तियों को लूटा जा रहा है।

जनता के बीच आक्रोश

बहादराबाद क्षेत्र और आसपास के ग्रामीणों में इस घटना को लेकर आक्रोश है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब विभाग और प्रशासन की ज़मीन ही सुरक्षित नहीं है, तो आम आदमी की ज़मीन कौन बचाएगा?

गांव के लोग साफ कह रहे हैं कि गंगा नहर की भूमि सिंचाई व्यवस्था का हिस्सा है। अगर इस पर कब्ज़ा हो गया, तो आने वाले समय में खेती-किसानी और पानी की आपूर्ति भी प्रभावित होगी।

अब और ढिलाई नहीं

यह मामला केवल एक खसरा संख्या 91 का विवाद नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की नाकामी का आईना है। अगर समय रहते भू-माफियाओं से यह भूमि मुक्त नहीं कराई गई, तो आने वाले समय में पूरे प्रदेश में ऐसे दर्जनों मामले सामने आएंगे।

ज़रूरत है कि:

  • कड़ी कार्रवाई कर पुलिस बल के साथ तत्काल कब्ज़ा हटाया जाए।
  • संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए, जिन्होंने विभाग को पक्षकार नहीं बनाया और मामले को लापरवाही से संभाला।
  • भू-माफियाओं पर गैंगस्टर एक्ट जैसी कड़ी धाराओं में मुकदमा दर्ज हो, ताकि वे दोबारा सरकारी संपत्ति पर कब्ज़ा करने की हिम्मत न कर सकें।

सरकारी संपत्ति जनता की धरोहर है। इसे लूटने वालों पर नकेल कसना प्रशासन और सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। अब जनता यही उम्मीद कर रही है कि गंगा नहर की ज़मीन से भू-माफियाओं को खदेड़ा जाएगा और राजकीय संपत्ति को बचाया जाएगा।

👉 यह रिपोर्ट दिखाती है कि किस तरह एक फर्जीवाड़े से भू-माफियाओं ने पूरे सिस्टम को हिला दिया और सरकारी ज़मीन को कब्जाने की जुगत भिड़ा डाली। लेकिन अब वक्त है कि सिस्टम जागे और जनता की संपत्ति को सुरक्षित रखे

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